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10th Hindi Important Short Question (श्रम विभाजन और जाति प्रथा)

श्रम विभाजन और जाति प्रथा (लघु उत्तरीय प्रश्न)

1. लेखक इस विडंबना की बात करते हैं विडंबना का स्वरूप क्या है

उत्तर — डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने जातिवाद के पोषको को विडंबना की बात कह कर संबोधित किया है

जातिवादी विडंबना के स्वरूप—: की चर्चा लेखक ने अपने शोध पर लेखक में करते हुए स्पष्ट सटीक प्रकाश डाला है
जातिवाद के जो लोग पोषक हैं वह इसका समर्थन कई आधार पर करते हैं
(1) कुछ लोगों का कहना है की आधुनिक सभ्य समाज कौन कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है जाति प्रथा में भी श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है इसी कारण इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन इसमें जाति प्रथा श्रम विभाजन के साथ-साथ श्रमिक विभाजन का भी रूप लिए हुए हैं

(2) भारत की जाति प्रथा की दूसरी विडंबना यह है कि या श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन ही नहीं करते बल्कि / वर्गों को एक दूसरे की अपेक्षा ऊंच-नीच भी करा देती है जो कि विश्व के किसी भी समाज में नहीं पाया जाता

(3) भारत की जाति प्रथा की तीसरी विडंबना यह है कि मनुष्य की प्रशिक्षण अथवा उसकी निजी छमता का विचार किए बिना दूसरे ही दृष्टिकोण जैसे माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार पहले से ही अर्थात गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है

(4) चौथी विडंबना यह है कि जाति प्रथा पैसे का दोषपूर्ण पूर्व निर्धारण ही नहीं करती बल्कि मनुष्य को जीवन भर के लिए एक पैसे में बांध देती है भले ही पैसा अनु उपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखा ही मर जाए

(5) पांचवी विडंबना यह है कि हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देता है जो उनका पैतृक पैसा ना हो भले ही वह उसमें प्रांगा तो इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है

2. जातिवाद के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं
अथवा
अंबेडकर के अनुसार जाति प्रथा के पोषक उसके पक्ष में क्या तर्क देते हैं

उत्तर। — जातिवाद के पोषक जातिवाद के पक्ष में अपना तर्क देते हुए उनकी उपयोगिता को सिद्ध कराना चाहते हैं

(1) जातिवादियों का कहना है कि आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है क्योंकि श्रम विभाजन जाति प्रथा का ही दूसरा रूप है इसलिए श्रम विभाजन में कोई बुराई नहीं है

(2) जातिवादी समर्थकों का कहना है कि माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार ही यानी गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है

(3) हिंदू धर्म पैसा परिवर्तन की अनुमति नहीं देता भले ही वह पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त ही क्यों न हो भले ही उससे भूखे मरने की नौबत आ जाए लेकिन इसे अपनाना ही होगा

(4) ज्योति वादियों का कहना है कि परंपरागत पेशा में व्यक्ति दक्ष हो जाता है और वह अपना कार्य सफलतापूर्वक संपन्न करता है

(5) जाति वादियों ने जातिवाद के समर्थन में व्यक्ति की स्वतंत्रता को अपहृत का सामाजिक बंधन के दायरे में ही जीने मरने के लिए विवश कर दिया है उनका कहना है कि इससे सामाजिक व्यवस्था बनी रहती है और अराजकता नहीं फैलती

3. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियां क्या है

4. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों है

5. जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख अप्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है।

6. लेखक आज के उद्योग में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों

7. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में लिखा है

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