श्रम विभाजन और जाति प्रथा (लघु उत्तरीय प्रश्न) Part 3
8. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए लेखक ने किन विशेषताओं को अवश्य कमाना है
उत्तर– डॉ भीमराव अंबेडकर ने सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए निम्नांकित विशेषताओं का उल्लेख किया है
(1) सच्चे लोकतंत्र के लिए समाज में स्वतंत्रता समानता और भारतीय भावना की वृद्धि हो
(2) समाज में इतनी गतिशीलता बनी रहे कि कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक संचालित हो सके
(3) समाज में बहुविध हितों में सब का भाग होना चाहिए और सब को उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए
(4) सामाजिक जीवन में आबाध संपर्क के अनेक साधनों का अवसर उपलब्ध रहने चाहिए
(5) दूध पानी के मिश्रण की तरफ भाईचारा होना चाहिए इन्हीं गुणों या विशेषताओं से युक्त तंत्र का दूसरा नाम लोकतंत्र है लोकतंत्र शासन की एक पद्धति नहीं है लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचार्य की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है इसमें यह आवश्यक है कि अपने साथियों के प्रति श्रद्धा व समान भाव है
9. जाति प्रथा पर लेखक के विचारों की तुलना महात्मा गांधी ज्योतिबा फुले और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया किसे करते हुए एक संक्षिप्त लेख तैयार करें
उत्तर– भारत में जाति प्रथा की परंपरा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है वैदिक काल में भी जाति प्रथा थी किंतु उसमें संकीर्णता और उदारता का अभाव था उनका रूप भिन्न-भिन्न था वैदिक काल के उपरांत श्रम द्वारा कार्य संपादन के आधार पर जातियों का वर्गीकरण हुआ है।
प्रारंभिक दौर में तो या वर्ण विभाजन चाहे जाति विभाजन कार्य संपादन के आधार पर सराहनीय था किंतु कालांतर में इस में सरलता और उदारता की जगह संकीर्णता और उदारता छुआछूत और ऊंच-नीच की भावना घर कर गया जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत में जाति विभाजन की भावना घर कर के जिसका परिणाम यह हुआ कि भारत में जाति विभाजन श्रम निष्पादन में अपने सार्थक भूमिका अदा करने से चूक गया और विघटन आबादी तत्वों के कारण जातीयता और कठोरता में बदल गया जिनका दुष्परिणाम आज भी समग्र भारत भोग रहा है इन्हीं संभावनाओं एवं जातिगत विद्वेष के कारण हमारी सही प्रगति लक्ष्य से भटक कर गतिहिन रूप रूप में दिख रही है श्रम को जब तक सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा तब तक भारत उन्नति के शिखर पर रहा किंतु जब इसमें ऊंच-नीच की भावना प्रबल होती गई तो भारत अवनति की ओर बढ़ गया और साथ ही समाज कई खंडों में विभक्त होकर शक्तिहीन अवस्था की ओर अग्रसर होता रहा
महात्मा गांधी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थे साथ ही वैष्णव विचारधारा के पोषक होने के कारण अहिंसा थे इसी कारण उन्हें जाति प्रथा को संगीता छुआछूत ऊंची नीच घृणा द्वेष आदि का घोर विरोध किया और वर्ण व्यवस्था के बारीकियों का सूक्ष्म विश्लेषण विश्लेषण विवेचन करते हुए अपना विचार प्रकट किया इस प्रकार गांधी के विचार साम्यवादी और सुधारवादी थे वे अहिंसा के पुजारी थे शोषण दमन अत्याचार के घोर विरोधी थे समानता और बंधुत्व प्रेम और आपसी भाईचारा के प्रबल पक्षधर थे
ज्योतिबा फुले एक समाज सुधारक चिंतक एवं मानवतावादी महामानव थे वह नारी शोषण के घोर विरोधी थे जाति प्रथा छुआ छूत ऊंच-नीच ब्राह्मणवादी व्यवस्था के घोर विरोधी थे उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार द्वारा इन कुरीतियों को दूर करने का सार्थक प्रयास किया उन्होंने मानव मानव के बीच की स्कीम दीवारों को मिटाने का काम किया
डॉ राम मनोहर लोहिया भी भारतीय चिंतन धारा के एक मजबूत स्तंभ थे उन्होंने समाजवादी विचारधारा का पोषण किया वह गैर बराबरी और जातीयता के घोर विरोधी थे सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति के पक्षधर थे उन्होंने पिछड़ों को जगाने का काम किया उनमें राजनीतिक चेतना भी जगाने का काम किया
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी इन्हीं मनीषियों की परंपरा में आते हैं इनके विचार भी बड़े ही सुलझे हुए और लोक हितकारी थे उन्होंने बचपन से लेकर युवा अवस्था तक भारतीय समाज में पर्याप्त जातीयता संकीर्णता असमानता व्यवहार विचार को देखा था साथ ही उनके अत्याचार को भोगा था शोषण दमन से पीड़ित होकर उनका स्वभाव भी विद्रोही हो गया साथ ही युगो युगो से शोषित पीड़ित दलित दलित जातियों को जगाकर प्रथम पंक्ति में बैठाने का काम किया विधि विज्ञान के बृहस्पति रूप में विख्यात पाई भारतीय संविधान के निर्माण में अतुलनीय योगदान दिया और समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े मानव को राष्ट्र के सर्वोच्च शिखर पर अरुण होने का आदेश दिया
अंबेडकर द्वारा रचित ग्रंथ इसके साक्षी है कि वो कितने बड़े विचारक थे समाज सुधारक थे सोच में गंभीर अन्वेषी थे भारतीयता को नए रूप में डालने वाले कुशल शिल्पी थे वह महामानव थे सुविज्ञ कानून विद थे भारत भारतीय के संयोग पुत्र थे
10. जातिवाद और आज की राजनीतिक विषय पर अंबेडकर जयंती के अवसर पर छात्रों के एक विचार गोष्ठी आयोजित करें
उत्तर– भारत में आरंभिक दौर से ही जाति प्रथा थे किंतु उनमें संकीर्णता और समानता नहीं थी वैदिक काल के बाद इसमें संकीर्णता और घृणा द्वेष भावना पनपते गया जिसका घृणित रूप रूप आज हमको देखने को मिल रहा
श्रम विभाजन की उपयोगिता के आधार पर हमारे पुरखों ने अपनी संतति के काम का बंटवारा कर दिया था ताकि समाज की प्रगति समय अनुकूल होती रहे किंतु धीरे-धीरे आबादी बढ़ती गई और वैचारिक मतभेद बढ़ते गये जिसके कारण आदमी व्यक्तिगत लाभ व हानि को लेकर स्वार्थी बनता गया और आज संकीर्णता की गंदगी के बीच जीवन व्यतीत कर रहा है
विज्ञान और तकनीकी विकास ने मानव के पैरों में पंख लगा दिए हैं अतः जातीयता की कठोरता और दबाव कम होने लगे हैं लोग बौद्धिकता के कारण तार्किक जीवन जीने के लिए विवश है सारी प्राचीन मान्यताएं खंडित होकर नए रूप में डाल रही है अतः प्राचीन काल में चली आ रही जाति प्रथा की बुराइयां बहुत कम हुई है
प्राचीन काल की व्यवस्था और जातीयता तथा आधुनिक काल की व्यवस्था और जातीयता में काफी अंतर है उस समय परंपरागत स्वरूप का पालन पोषण कठोरता के साथ किया था तथा समाज का नियंत्रण इतना कठोर था कि व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता बंधन बन गई थी सामाजिक आचार विचार और जाति व्यवस्था के बीच ही जीना मरना पढ़ता था किंतु आजादी के बाद भारत में जातीयता का स्वरूप काफी बदल गया और वर्तमान राजनीति ने उसे काफी प्रभावित किया है
भारतीय राजनीतिक ने भारतीय जाति व्यवस्था के भीतर पर्याप्त अनेक बुराइयों को दूर कर उसमें नई स्फूर्ति और नया रूप देने का काम किया है आज मानव मानव के बीच किसी भी प्रकार के असमानता या शोषण दमन नहीं है लोग अपनी रुचि आर्थिक संपन्नता और अवसर के आधार पर विविध क्षेत्रों में विकास कर रहे हैं शादी विवाह में भी अंतरजातीय विवाह के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है लोग ऊपर उठकर अपने विकास में लगे हैं सबको समान अवसर प्राप्त है राष्ट्र ने सबको समान अधिकार दिया है और सम्मान विचार से लैस करने का काम किया है
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