श्रम विभाजन और जाति प्रथा (लघु उत्तरीय प्रश्न)
3. जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक की प्रमुख आपत्तियां क्या है
उत्तर– जातिवाद के पक्ष में दिए गए तर्कों पर लेखक ने कई आपत्तियां उठाई है जो चिंतनीय है
(1) लेखक के दृष्टिकोण में जाति प्रथा गंभीर दोषों युक्त है
(2) जाति प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर नहीं करता
(3) मनुष्य के व्यक्तिगत भावना या व्यक्तिगत रूचि का इसमें कोई स्थान या महत्त्व नहीं रहता
(4) आर्थिक पहलू से भी अत्यधिक हानिकारक जाति प्रथा है
(5) जाति प्रथम मनुष्य की स्वाभाविक प्रेरणा रुचि व आत्मशक्ति को दबा देती है साथी अस्वाभाविक नियमों में जकड़ कर निष्क्रिय भी बना देती है
4. जाति भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप क्यों है
उत्तर— जाति या जाति प्रथा भारतीय समाज में श्रम विभाजन का स्वाभाविक रूप नहीं है किंतु यह मनुष्य की रूचि और क्षमता का ख्याल नहीं रखता मनुष्य की प्रशिक्षण किया उसकी निजी क्षमता पर विचार नहीं कर के उसके वंशानुगत पेशा में जीने मरने के लिए विवश कर देता है
5. जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख अप्रत्यक्ष कारण कैसे बनी हुई है।
उत्तर– हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है जो उनका पैतृक पैसा नहीं हुआ भले ही हुआ उस पैसे में प्रांगत हो इस कारण पैसा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोजगारी का एक प्रमुख और प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है
6. लेखक आज के उद्योग में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या किसे मानते हैं और क्यों
उत्तर– लेखक की दृष्टि में आज उद्योग में गरीबी और उत्पीड़न से भी बड़ी समस्या यह है कि बहुत से लोग निर्धारित कार्य को अरुचि के विवशता बस करते हैं इसका प्रतिफल यह होता है कि काम में मन नहीं लगता है और दिमाग भी अशांत रहता है इसमें स्वाभाविक था और रुचि मर जाती है
7. लेखक ने पाठ में किन प्रमुख पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में लिखा जा है
उत्तर– लेखक ने आर्थिक पहलुओं से जाति प्रथा को एक हानिकारक प्रथा के रूप में दिखाया है
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