सम्पूर्ण विश्व में महिला सशक्तिकरण की लहर चल रही है। महिला अब गुलाम नहीं। वह स्वतंत्र है। वह अपने अनुसार संसार में जिएगी और संसार का संचालन करेगी। इसके लिए जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आन्दोलन चल रहा है उसी को कहते हैं- ‘महिला सशक्तिकरण’।
महिला सशक्तिकरण के लिए ही महिला आरक्षण हेतु भारत की राज्यसभा में पिछले दिनों एक विधेयक पारित किया गया। इससे भारत की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गयी। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। यहाँ का प्रजातंत्र महिला सशक्तिकरण का समर्थन कर रही है। यह एक तरह से उन्नति और शांति के लिए उपाय है। ‘चूँकि युद्ध की शुरूआत मनुष्य के मन से होती है, इसलिए शांति की सुरक्षा के उपायों की शुरूआत भी वहीं से होनी चाहिए।’ महिलाएँ हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा है। इसलिए राष्ट्र के विकास के इस महान् कार्य में महिलाओं की भूमिका और योगदान को पूरी तरह और सही परिप्रेक्ष्य में रखकर ही राष्ट्र निर्माण के कार्य को समझा जा सकता है।
महिला सशक्तिकरण का अर्थ ऐसी प्रक्रिया से है जिसमें महिलाओं की अपने आप को संगठित करने की क्षमता बढ़ती तथा सुदृढ़ होती है। वे लिंग, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और परिवार व समाज में भूमिका के आधार पर निर्धारित संबंधों को दरकिनार करते हुए आत्म-निर्भरता विकसित करती हैं। इसके अन्तर्गत विकसित विकल्पों के चयन और संसाधनों के नियंत्रण की उनकी क्षमता के साथ-साथ परिवार और समुदाय के साथ सहभागितापूर्ण संबंधों का लाभ
उठाने की उनकी क्षमता भी शामिल है।
महिला सशक्तिकरण से सकारात्मक असर पड़ेगा, बल्कि पुरुषों और बच्चों को भी इससे लाभ होगा। उदाहरण के लिए इस बात के पक्के प्रमाण हैं कि महिलाओं की शिक्षा से लड़कों और लड़कियों दोनों की बाल मृत्यु दर में कमी आई है। भारतीय समाज में महिलाओं की हीन स्थिति की वजह से समाज में व्याप्त सामान्य बदहाली को कारगर तरीके से दूर करने में कामयाबी नहीं मिल पा रही है। इस तरह महिलाओं के माध्यम से बालिकाओं और वयस्क महिलाओं दोनों की खुशहाली सुनिश्चित की जा सकती है। समासतः महिला मजबूतीकरण आन्दोलन में बुनियादी तौर पर बदलाव आया है। अब राजनीतिक शक्ति बनकर उभर रही हैं। अब भारत सशक्त बनकर उभरेगा।