प्रिय अभिशेष,
मधुर स्मृति।
विक्रमगंज, 15 सितम्बर, 2022
आज तुम्हें पत्र लिखते समय में बहुत डरा हुआ हूँ। मेरा मन कल हुई बस दुर्घटना को याद करके काँप रहा है। सारी रात मुझे उसी दुर्घटना के स्वप्न आते रहे। कभी-कभी मैं संभल कर यही सोचने लगता हूँ कि मैं जीवित हूँ या स्वप्न देख रहा हूँ।
तुम्हें पता है, हम महाविद्यालय की ओर से रजरप्पा की यात्रा पर गए हुए थे। वापसी पर जब हमारी बस एक एक पहाड़ी ढलान पर सरकती चली आ रही थी कि अचानक बस के ब्रेक ने काम करना बंद कर दिया। चालक ने तुरत ही यात्रियों को खतरे का संकेत कर दिया कि ब्रेक बेकार हो चुके हैं। बस किसी भी समय पहाड़ी मोड़ पर नियंत्रण खो सकती है। छोटे-छोटे घुमावदार मोड़ों को याद करके हमारा दिल काँप उठा। हमें लगा अब मृत्यु नजदीक है। सारी बस में कबूतरखाने जैसा फड़फड़ाता हुआ दृश्य उपस्थित हो गया। सभी यात्री चीखने-चिल्लाने लगे।
मार्ग के एक ओर पहाड़ियाँ थीं, तो दूसरी ओर खड्डे तथा खाइयाँ मृत्यु को आया जानकर दो चार छात्रों ने बस के दरवाजों, खिड़कियों से कूदने की चेष्टा की। तभी भयंकर धमाका हुआ। बस के शीशे और इंजन आदि पापड़ की तरह चकनाचूर हो गए। ऐसा लगा मानो असमान से बिजली टूटकर हम पर गिर पड़ी हो। बस के भीतर भयंकर चीत्कार मच गया। बस चालक ने समझदारी की। वह बस को एक चट्टान के साथ टकरा कर अपनी सीट से कूद गया। एक छात्र, जो बस का दरवाजा खोलकर कूदने की चेष्टा में था, बस और चट्टान के बीच कुचल कर मर गया। उसका शरीर बुरी तरह पिस गया। उसकी अस्थियाँ भी पूरी तरह नहीं मिलीं। सारी चट्टान खून और मांस की बोटियों से भर गई थीं। हमसे वह दृश्य देखा नहीं गया। एक और छात्र, जो खिड़की से सिर बाहर निकाले हुए था, उसकी बाई आँख और ऊपर का हिस्सा
चट्टान से टकराकर उड़ गया। उसकी दशा मरने से भी बदतर हो गई। उसे तुरत अस्पताल ले जाया गया, किन्तु उसने मार्ग में ही तड़प-तड़प कर प्राण त्याग दिए ।
शेष छात्रों को थोड़ी-थोड़ी चोटें आई। कोई बोल नहीं रहा था। मित्र की मृत्यु पर हम रो भी न सके। सब यंत्र की तरह गुम से दिखाई देने लगे। मैं भी उनमें से एक था। मुझे अब भी रह-रहकर उस दुर्घटना की याद आती है, तो डर के मारे आँखें बंद कर लेता हूँ। ईश्वर ऐसी दुर्घटना का क्षण किसी को न दिखाए।
इस दुर्घटना की चर्चा घर पर मत करना। मैं बुरी तरह डरा हुआ हूँ। बस, मेरी तरफ से माताजी को कुशलता का संदेश देना ।
तुम्हारा अभिन्न,
पंकज कुमार शर्मा