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बिहार दिवस पर निबंध

बिहार का प्रथम उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथ शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। इस ग्रंथ में माघव विदेह नामक राजा का उल्लेख है, जिन्होंने मिथिला में राज्य की स्थापना की। इस राज्य का नाम ‘बिहार’ बौद्धों के निवास स्थान ‘विहार’ के नाम पर पड़ा, अर्थात् विहार धीरे-धीरे ठेठ होकर ‘बिहार’ में परिवर्तित हो गया। बंगाल विभाजन (1905 ई० में) और झारखण्ड (2000 ई० में) अलग राज्य बने। इन सबके बावजूद बिहार ने अपना स्थायित्व बरकरार रखा है और निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

2012 ई० में बिहार ने अपनी स्थापना के गौरवमयी 100 वर्ष पूरा कर लिया और इस उपलक्ष्य में राज्य सरकार ने 22 मार्च को हर वर्ष बिहार दिवस मनाने की घोषणा की। बिहार दिवस हमें अपने राज्य के पूराने गौरव, कला, संस्कृति की याद दिलाता है। हमारा बिहार विभूतियों की भूमि रही है, यह याद दिलाता है। स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की यह जन्म भूमि रही है। गौतम बुद्ध और महावीर की यह धरती शुरूआत से ही गौरवमयी रही है। बिहार की वर्तमान राजधानी पटना (पाटलीपुत्र) को कई शासकों ने अपनी राजधानी चुना था।

बिहार में अनेक धरोहर एवं दर्शनीय स्थल हैं। सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरू गोविन्द सिंह का जन्म भी पटना सिटी में हुआ था। पटना सिटी सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है। गया बौद्धधर्म के अनुयायियों का तीर्थस्थल है। प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय अपने समय भारत का प्रमुख शैक्षणिक स्थल था। चीनी यात्री और बौद्ध भिक्षु ह्वेनसांग, हर्षवर्धन के काल में बौद्ध धर्म के मूल ग्रन्थों का अध्ययन करने नालन्दा विश्वविद्यालय में आया था। इससे इस विश्वविद्यालय की महत्ता को आंका जा सकता है। वर्तमान में पुनः नालन्दा विश्वविद्यालय को स्थापित किया जा रहा है। पटना को उत्तरी बिहार से जोड़ने के लिए पटना के निकट गंगा नदी पर बना महात्मा गाँधी सेतु एशिया का सबसे बड़ा सड़क पुल है। अन्य भी बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं जो अपनी महत्ता के लिए जाने जाते हैं।

अत:यह कहा जा सकता है कि बिहार दिवस हमें हमारी पुरानी सभ्यता, संस्कृति और गौरव की याद दिलाती है।

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